श्री गुरुवे नमः
॥ नमो नमः ॥
संस्कृत’ तो वह संस्कार है जो हर भारतीय के हृदय में अग्नि के तिन्के की भाँति जीवंत है ।
संस्कृत” के भव्य राजमार्ग तक ले जानेवाली छोटी ही सही, पर एक पगडण्डी बनाने का यह यत्किञ्चित प्रयत्न है । भावना यह है कि भारत, व भारतीय जीवनमूल्य गतिशील बने रहें।
वैसे तो संस्कृत-प्रेमी लोग संस्कृत रत्नों का यथा संभव उपयोग कर ही लेंगे, पर अधिक खुशी होगी अगर शिक्षकों और सतर्क माता-पिता को यह वेब साइट उपयुक्त हो सके ! यहाँ संकलित मनीषीयों की वाणी, किसी एक को भी सत्त्व प्रवृत्त करे तो वह वेब साइट के सार्थक्य के लिए काफी है; परंतु, विद्यार्थीयों की संस्कृत में रुचि और भाषासमागम बढाने के यज्ञ में सम्मिलित होने की भावना भी यहाँ ज़रुर रही है ।
इस कार्य में आप भी हमारे साथ जुड़ सकते है,
* सुभाषित पढाना; मुखपाठ कराना; स्पर्धाओं का आयोजन करना ।
* त्योहार इ. के विशेष अवसर पर संस्कृत या हिन्दी-मिश्रित नाटिकाएँ प्रस्तुत करना ।
* छोटी छोटी संस्कृत कहानीयों के पठन की स्पर्धा करना ।
* संस्कृत गाने सीखाना/सुनाना ।
* पुरानी कहानियों और उक्तियों को आधुनिक उदाहरण देकर स्पष्ट करना ।
* वर्ग में या घर में संस्कृत सूक्तियाँ और सुभाषित लिखना ।
* व्याकरण से डराने के बजाय, दैनंदिन जीवन के छोटे छोटे वाक्य-प्रयोग सीखाना और उनका इस्तमाल करना । इत्यादि...
अन्य साधनों की तरह, संस्कृत भी केवल माध्यम है; उन्नत जीवन मूल्यों के आविष्कार बिना, अपने आप में वह पाण्डित्य से अधिक कुछ भी नहीं । किंतु, माध्यम के बगैर, साध्य भी क्या असाध्य नहीं ?
सामान्य संस्कृत से शुरु होनेवाली यह जीवनयात्रा, राष्ट्रभूमि को गौरवमार्ग तक ले जाने में सहायक हो, यही अभ्यर्थना । इस छोटी सी सफर तय करने में, अनेक पूर्वप्रयत्नों की मदत ली है; उन सत्परुषों को, सत्कृत्यों के प्रेरक शिक्षकों, महापुरुषों व ईश्वर को नमस्कार ।