
श्री गणेशाय नमः
अनुसंधान ईमानदारी से की गई एक प्रक्रिया है।इस में गहनता से अध्ययन किया जाता है और विवेक एवं समझदारी से काम लिया जाता है।चूँकि यह एक लंबी प्रक्रिया है अतः इसमें धैर्य की परम आवयश्कता होती है
रामायण
महर्षि वाल्मी कि द्वारा रचित रामायण (Ramayan) महाकाव्य जो संस्कृत भाषा में लिखा गया है। रामायण को संस्कृत में रामायणम् कहते हे, इसका अर्थ राम + आयणम् जो श्री राम की जीवन गाथा का महाकाव्य है। रामायण में सात काण्ड है, और 24,000 श्लोक लिखे गये हैं।
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श्रीमद्भगवद्गीता
श्रीमद्भगवद् गीता (Bhagavad Gita ) भगवान श्री कृष्ण द्वारा गीता का सन्देश जो अर्जुन को सुनाया है। भागवत गीता में 18 अध्याय और 700 श्लोक सम्पूर्ण वेदो का सार वर्णित करते हैं। श्रीमद्भगवद् गीता को अर्जुन के अतिरिक्त संजय ने सुना और संजय ने धृतराष्ट्र को सुनाया। गीता में श्रीकृष्ण द्वारा 574 श्लोक बोले गए हे, अर्जुन द्वारा 85 श्लोक बोले गए है, संजय द्वारा 40 श्लोक बोले गए और धृतराष्ट्र द्वार 1 श्लोक बोला गया है। महाभारत का युद्ध गीता की पुष्टभूमि है। भगवद गीता में कर्म योग, ज्ञानयोग और भक्ति योग को भगवान कृष्ण द्वारा सरल भाषा में चर्चा की गई है।

नादानुसंधान
नास्ति नादात परो मन्त्रो न देव: स्वात्मन: पर: |
नानु सन्धात परा पूजा नहि तृप्ते: परम सुखं ||

अष्टावक्र एक प्राचीन वैदिक ऋषि थे, " अष्टावक्र गीता" के लेखक होने का श्रेय दिया जाता है, और जो पूजनीय ऋषि, अरुणी के पोते थे।
तुम न तो पृथ्वी हो, न वायु, न अग्नि, न जल और न ही आकाश।
मोक्ष पाने के लिए, स्वयं को इन सबकी साक्षी चेतना के रूप में जानो।
यदि तुम स्वयं को भौतिक शरीर से अलग कर लो और चेतना में विश्राम करो,
तो इसी क्षण तुम सुखी, शांत और बंधन से मुक्त हो जाओगे।
अष्टावक्र को राजा जनक को वास्तविकता की प्रकृति समझाने और उन्हें आत्मज्ञान का मार्ग दिखाने के लिए जाना जाता है।
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राजा भर्तृहरि
भर्तृहरि संस्कृत मुक्तककाव्य परम्परा के अग्रणी कवि हैं। संस्कृत साहित्य के इतिहास में भर्तृहरि एक नीतिकार के रूप में प्रसिद्ध हैं। इनके शतकत्रय (नीतिशतक, शृंगारशतक, वैराग्यशतक) की उपदेशात्मक कहानियाँ भारतीय जनमानस को विशेष रूप से प्रभावित करती हैं। प्रत्येक शतक में सौ-सौ श्लोक हैं। बाद में इन्होंने गुरु गोरखनाथ के शिष्य बनकर वैराग्य धारण कर लिया था इसलिये इनका एक लोकप्रचलित नाम बाबा भरथरी भी है।
इनकी भाषा सरल, मनोरम, मधुर,रसपूर्ण तथा प्रवाहमयी है।
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मणि
रहस्यमयी मणियां
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हिंदू स्टडीज
अग्निवायुरविभ्यस्तु त्रयं ब्रह्म सनातनम्। दुदोह यज्ञसिद्ध्यर्थमृग्यजुःसामलक्षणम्॥
मनु॰ १.२३॥
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सृष्टि
नासदासीन्नो सदासीत्तदानीं नासीद्रजो नो व्योमा परो यत्। किमावरीव: कुह कस्य शर्मन्नम्भ: किमासीद्गहनं गभीरम्॥ (ऋग्वेद मंत्र १०/१२९/९)
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आखिर क्या है? विक्रम संवत और शक संवत
संवत्सरं द्वे त्वयने वदन्ति संख्याविदो दक्षिणमुत्तरं च ॥ १४ ॥
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आर्यावर्त
जिसके उत्तर में हिमालय, दक्षिण में विंध्याचल,
पूर्व में बंगाल की खाडी और पश्चिम में अरब सागर है ।
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जम्बूद्वीप
अत्रापि भारतश्रेष्ठ जम्बूद्वीपे महामुने।।
यतो कर्म भूरेषा यधाऽन्या भोग भूमयः॥23॥

परमात्मा
शिशुम् जज्ञानम् हर्य तम् मृजन्ति शुम्भन्ति वहिन मरूतः गणेन।
कविर्गीर्भि काव्येना कविर् सन्त् सोमः पवित्रम् अत्येति रेभन्।।
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महाभारत
भारतीय सनातन धर्मका एक महान् ग्रन्थ तथा अमूल्य रत्नोंका अपार भण्डार है। भगवान् वेदव्यास स्वयं कहते हैं कि इस महाभारत (Mahabharat) में वेदोंके रहस्य और विस्तार, उपनिषदोंके सम्पूर्ण सार, इतिहास पुराणोंके उन्मेष और निमेष, चातुर्वर्ण्य के विधान, पुराणों के आशय, ग्रह-नक्षत्र-तारा आदिके परिमाण, न्याय, शिक्षा, चिकित्सा, दान, पाशुपत (अन्तर्यामीकी महिमा), तीर्थों, पुण्य देशों, नदियों, पर्वतों, वनों तथा समुद्रोंका भी वर्णन किया गया है।
सम्पूर्ण महाभारत में 1,10,000 श्लोक की संख्या है, और 18 पर्व, 100 उपपर्वो में विभाजित किया गया है।
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कला का उत्कृष्ट रूप काव्य है और उत्कृष्टतम रूप नाटक। नाटय कला पर प्राचीन भारतीय ग्रंथ नाट्यशास्त्र है जो अपनी विचारों की व्यापकता के साथ-साथ समग्रता से परिपूर्ण है
ललित कलाओं का विश्वकोश इस ग्रंथ ने भारत की उदात्त कला चेतना को
अनुप्रमाणित किया है।
वर्तमान में उपलब्ध नाट्य शास्त्र में 36 अध्याय तथा 6000 श्लोक हैं

आदि शंकराचार्य
अज्ञान के कारण जीव अपने स्वरूप को भूल कर अपने को कर्ता-भोक्ता समझता है। इसी से उसको शरीर धारण करना पड़ता है और बार-बार संसार में आना पड़ता है। यही बंधन है। इस बंधन से छुटकारा तभी मिलता है, जब अज्ञान का नाश होता है और जीव अपने को शुद्ध चैतन्य ब्रह्म के रूप में जान जाता है। शरीर रहते हुए भी ज्ञान के हो जाने पर जीव मुक्त हो सकता है, क्योंकि शरीर तभी तक बंधन है, जब तक जीव अपने को आत्मा रूप में न जानकर अपने को शरीर, इन्द्रिय, मन आदि के रूप में समझता है।
आदि शंकराचार्य, जिन्हें शंकर भगवद्पादाचार्य के नाम से भी जाना जाता है, वेदांत के अद्वैत मत के प्रणेता।

गुरु बृहस्पति
बृहस्पति को देवताओं के गुरु इन्होने धर्मशास्त्र, नीतिशास्त्र, अर्थशास्त्र और वास्तुशास्त्र पर ग्रंथ लिखे।
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जनक
जनक के उल्लेख ब्राह्मण ग्रंथों, उपनिषदों, रामायण, महाभारत और पुराणों में हुए हैं। इतना निश्चित प्रतीत होता है कि जनक नाम के कम से कम दो प्रसिद्ध राजा अवश्य हुए; एक तो वैदिक साहित्य के दार्शनिक और तत्वज्ञानी जनक विदेह और दूसरे भगवान राम के ससुर जनक, जिन्हें वायुपुराण और पद्मपुराण में सीरध्वज कहा गया है। असंभव नहीं, और भी जनक हुए हों और यही कारण है, कुछ विद्वान् वशिष्ठ और विश्वामित्र की भाँति 'जनक' को भी कुलनाम मानते हैं।
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नाग
अनंत , वासुकी , तक्षक , कर्कोटक , शंख , पद्मा , महापद्म , गुलिका
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Sanskrit Life Style
खोज की इस यात्रा में हमारे साथ जुड़ें, क्योंकि हम जीवन के अधिक सामंजस्यपूर्ण तरीके को अपनाने के लिए अंतर्दृष्टि, सुझाव और प्रेरणा साझा करते हैं।

श्री निश्चलानंद सरस्वती
(श्री गोवर्धन पीठ जगद्गुरु शंकराचार्य )
स्वामी श्री निश्चलानंद सरस्वती जी की प्रतिभा, प्रतिभा, सनातन धर्म के प्रति समर्पण ,हमारे देश की प्राचीन संस्कृति की रक्षा के लिए एक राष्ट्रव्यापी अभियान चला रहे हैं, पुरी के शंकराचार्य सनातन धर्म, उसके मूल्यों और गौरव की रक्षा के लिए भारत भर में दूर-दूर तक यात्रा कर रहे हैं।

Sanskrit and Humanity (चाणक्य)
स्वाम्यमात्यजनपददुर्गकोशदण्डमित्राणि प्रकृतयः ॥अर्थशास्त्र ०६.१.०१॥

कैलास
तत्तु शीघ्रमतिक्रम्य कान्तारं रोमहूर्गणम-कैलासं पांडुरं प्राप्य द्रष्टासूर्य भविष्यथ।

सुमेरु पर्वत
सुमेरु पर्वतों का राजा है।
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आत्मा
यच्चाप्नोति यदादत्ते यच्चाति विषयानिह।
यच्चास्य सन्ततो भावस्तस्मादात्मेति कीर्त्यते।।
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