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योग दर्शन

लेखक की तस्वीर: संस्कृत का उदयसंस्कृत का उदय

ईश्वर का स्वरूप कैसा है ?

क्लेशकर्मविपाकाशयैरपरामृष्टः पुरुषविशेष ईश्वरः ॥ २४ ॥ पातञ्जलयोगदर्शन


क्लेशकर्मविपाकाशयैः = क्लेश, कर्म, विपाक और आशय-इन चारोंसे; अपरामृष्टः जो सम्बन्धित नहीं है (तथा); पुरुषविशेषः जो समस्त पुरुषोंसे उत्तम है, वह; ईश्वरः ईश्वर है।


लड़का पर्वतीय दृश्य के सामने योगासन में, पीला धारीदार कपड़ा पहने, शांत मनोदशा में। बादलों से घिरा हरा परिदृश्य।
Yoga

व्याख्या -


क्लेश - अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष और अभिनिवेश- ये पाँच 'क्लेश' हैं;


इनका विस्तृत वर्णन पतंजलि योगसूत्र के दूसरे पाद के तीसरे सूत्र से नवें तक है।

कर्म - 'कर्म' चार प्रकारके हैं-पुण्य, पाप, पुण्य और पापमिश्रित तथा पुण्य-पापसे रहित (योग०४।७) ।


विपाक - कर्मके फलका नाम 'विपाक' है (योग० २।१३)


आशय - कर्मसंस्कारोंके समुदायका नाम 'आशय' है

(योग० २।१२)।


पुरुष विशेष - समस्त जीवों का इन चारों से अनादि सम्बन्ध है। यद्यपि मुक्त जीवों का पीछे सम्बन्ध नहीं रहता तो भी पहले सम्बन्ध था ही; किंतु ईश्वर का तो कभी भी इनसे न सम्बन्ध था, न है और न होने वाला है; इस कारण उन मुक्त पुरुषों से भी ईश्वर विशेष है, यह बात प्रकट करने के लिये ही सूत्रकार ने 'पुरुषविशेषः' पद का प्रयोग किया है॥



 
 
 

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नमो नमः

एक भारत, नेक भारत, अनेक परंपराएं

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