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सा विद्या या विमुक्तये।

विद्या वही जो बंधनों से मुक्ति दिलाए।

तत्कर्म यंत्र बंधाय सा विद्या या विमुक्तये।
अयासायपरं कर्म विद्यान्या शिल्पनैपुणम् ॥

विष्णु-पुराण (१.१९.४१)

"बंधन का कारण न हो , वही कर्म है और मोक्ष को सिद्ध करने वाली हो , वही विद्या है।"

इससे भिन्न भिन्न कर्म वैयक्तिक परिश्रम रूप और भिन्न भिन्न विद्याएँ केवल कला-कौशल रूप ही हैं ॥"

संस्कार

संस्कारो हि गुणान्तराधानमुच्यते।

​संस्कारो नाम स भवति यस्मिञ्जाते पदार्थो भवति योग्यः कस्यचिदर्थस्य’ अर्थात् संस्कार वह है, जिसके होने से कोई पदार्थ या व्यक्ति किसी कार्य के योग्य हो जाता है | तंत्रवार्तिक के अनुसार ‘योग्यतां चादधानाः क्रियाः संस्कारा इत्युच्यन्ते’ अर्थात् संस्कार वे क्रियाएँ तथा रीतियाँ हैं, जो योग्यता प्रदान करती हैं |

 

गर्भ से लेकर मृत्यु तक मनुष्य के जीवन में निभाये जाते हैं, धर्म में 16 संस्कारों का उल्लेख किया जाता है, जो मानव के जीवन के विभिन्न चरणों को दर्शाते हैं। ये संस्कार जन्म से पूर्व से लेकर मृत्यु के बाद तक किए जाते हैं। प्राचीन काल में संस्कारों की संख्या लगभग चालीस थी। जैसे-जैसे समय बदलता गया, लोगों की व्यस्तता के कारण कुछ संस्कार स्वत:विलुप्त हो गये।

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गौतम स्मृति में चालीस प्रकार के संस्कारों का उल्लेख है, जबकि महर्षि अंगिरा ने पच्चीस संस्कारों का वर्णन किया है। व्यास स्मृति में सोलह संस्कारों का वर्णन हुआ है और हमारे धर्मशास्त्रों में भी मुख्य रूप से सोलह संस्कारों की व्याख्या की गई है। तो, कौन-कौन से हैं ये 16 संस्कार, चलिए जानते हैं...

नमो नमः

एक भारत, नेक भारत, अनेक परंपराएं

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